मैं श्वेत हूँ Avinasha Sharma
मैं श्वेत हूँ
Avinasha Sharmaरंग दे अपने रंग में,
अब मैं श्वेत हूँ।
सुन, ऐ पानी की बूंद!
मरूस्थल की मैं रेत हूँ।
ना जानूँ रंगाई,
ना रंगों का है ज्ञान।
मैं क्या जानूँ प्रेम क्या?
क्या प्रेम की है पहचान?
बरसों की मैली चुनरिया
अब धो लाई हूँ,
ऐ रंगरेज़! तेरे संग रंगने की
अब लौ लाई हूँ।
फीका निकला रंग जो लगा अब तक,
आस है उस रंग की जो लगे रूह तक।
अगर चाहे तो बना ले अपने रंग मुझे,
अपनी चित्रकारी में ले अपने संग मुझे।
ऐ चित्रकार! रूबरू तेरे रंगों से होने तुझ तक आई हूँ,
तेरी कला का अंश हूँ मैं, जान यथार्थ को आई हूँ।