गुरु दक्षिणा  DEVENDRA PRATAP VERMA

गुरु दक्षिणा

DEVENDRA PRATAP VERMA

जीवन है एक कठिन सफ़र
तुम पथ की शीतल छाया हो,
अज्ञान के अंधकार में
ज्ञान की उज्जवल काया हो।
 

तुम कृपादृष्टि फेरो जिसपे
वह अर्जुन सा बन जाता है,
जो पूर्ण समर्पित हो तुममें
वह एकलव्य कहलाता है।
 

जब ज्ञान बीज की हृदय ज्योति से
कोई पुष्प चमन मे खिलता है,
मत पूछो उस उपवन को
तब कितना सुख मिलता है।
 

हर सुमन खिल उठे जीवन का
यह सुंदर ध्येय तुम्हारा है,
कर्तव्य मार्ग की बाधा से
नित तुमने हमें उबारा है।
 

किन्तु सच्चाई के विजय ज्ञान की
जो कहती हमे कहानी है,
आज भला उन आंखो से
छलक रहा क्यों पानी है।
 

पीड़ा का आँसू बोल पड़ा
धीरज के बंधन तोड़ पड़ा।
जिनको सिखलाया सदाचार,
वो अनाचार के साथ चल रहे,
जिनको दिखलाया धर्म मार्ग,
वो अधर्म मार्ग की ओर बढ़ रहे।
 

कैसी है ये गुरु भक्ति
और कैसी है ये गुरु दक्षिणा ?
यह सोच रही उन आँखों में
एक दर्द भरी हैरानी है।
 

यदि शाप ग्रस्त इस धरती को
पाप मुक्त कर देना है,
तो छोड़ अधर्म की राह तुम्हें
सत्पथ पर चल देना है।
 

सत्य धर्म की राह पर
तुम जितने कदम बढ़ाओगे,
हमसे मिली शिक्षा का
तुम उतना मान बढ़ाओगे।
बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा,
बस यही है सच्ची गुरुभक्ति
और यही हमारी गुरु दक्षिणा।

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