कन्यादान RATNA PANDEY
कन्यादान
RATNA PANDEYआँखों से नीर छलकता है, अधरों से प्यार बरसता है,
दिल में पीड़ा सी होती है, जब कन्यादान है होता।
उन हाथों का क़र्ज़ कोई नहीं चुका सकता,
जिन हाथों ने है कन्यादान किया,
झोली खाली हो जाती तब,
सोने का कोई सिक्का उसे
कभी नहीं भर सकता।
खुशियाँ देखकर बेटी की मन हल्का हो जाता,
दामाद अगर आ जाए तो भगवान सा है पूजा जाता।
चिराग देकर अपने घर का,
ख़ुद अँधेरे में हैं बस जाते,
समुद्र सा विशाल हृदय है उनका,
जो इतना मुश्किल काम हैं कर जाते।
लाख ठोकरें खाकर भी वह दरवाजे पर हैं दिखते,
उतार कर अपने सर की पगड़ी पैरों पर हैं रख देते।
धैर्य ना जाने कितना उनकी रग-रग में है बसता,
बेटी का घर ना उजड़े बस यही ख्याल दिल में है बसता।
देखकर यह हालात मन विचलित सा हो जाता,
किसने यह हालात बनाए मन उसे कोसने लग जाता।
कन्यादान ना किया हो जिसने,
वह क्या जाने पीर पराई,
पाल पोसकर बड़ा किया फिर करनी पड़ती है विदाई।
देना सीखो इन दिलदारों से,
लेना तो सबको है आता,
झुकना सीखो इन प्यारों से,
झुकाना तो सबको है आता।
त्याग और बलिदान की हैं ये मूरत,
सौंप दी है तुम्हें प्यारी सी सूरत,
सौभाग्यशाली हैं वह, जिन्होंने कन्यादान किया,
उनसे अधिक सौभ्यागशाली हैं वह,
जिन्होंने कन्यादान लिया।
होता है उधार ये ऋण,
जो बेटी किसी की हैं ले आते,
वो ऋणमुक्त तभी हैं हो सकते,
जब कन्या को परिवार में सम्मान मिले,
और माता-पिता को उनके,
बराबरी का हक़ और मान मिले।
गुनहगार नहीं वह होते जो कन्यादान हैं करते,
फिर क्यों उन्हें हर बार अपमान ही सहना पड़ता है,
स्तम्भ हैं वही, जिनके दिल के
टुकड़े से, घर परिवार है चलता।
तोड़ दोगे यदि स्तम्भों को,
तो घर कहाँ से बनाओगे,
याद रखो स्तम्भों के बिना,
तुम बेघर ही रह जाओगे।
याद रखो स्तम्भों के बिना,
तुम बेघर ही रह जाओगे।
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मेरी कविता कन्यादान समाज की उस सच्चाई को प्रकट करती है जिसका सामना एक बेटी के माता पिता को करना पड़ता है। वह जिस घर में अपनी बेटी का विवाह निश्चित करते हैं, वहाँ उन्हें हमेशा ही नतमस्तक रहना पड़ता है। जबकि उन्हें भी बराबरी का हक़ और सम्मान मिलना चाहिए। वह तो अपने दिल का टुकड़ा देकर दूसरे का घर बसाते हैं, फिर उन्हें ही अपमान का सामना क्यों करना पड़ता है ?