कपूतों का बखान SUBRATA SENGUPTA
कपूतों का बखान
SUBRATA SENGUPTAरिक्त हाथ आए थे
रिक्त हाथ जाओगे,
फिर क्यों अपनी झोली
औरों के हक़ से भरते हो?
समाज का मंथन करके,
अमृत स्वयं ले लेते हो।
धीरे-धीरे अपना गरल
समाज में घोलते जाते हो,
भूखों के निवाले छीनकर
अपने पौत्र तक के लिए संजोते हो,
फिर भी इस तमाशबीन समाज में,
दानवीर कर्ण कहलाते हो।
रिक्त हाथ आए थे
अब काले धन के कुबेर हो,
काला बाज़ारी, अत्याचारी, अन्यायकारिओं के सहोदर हो,
फिर भी इस तमाशबीन समाज के
न्यायकारी ठेकेदार हो।
न जाने कितनी अबलाओं के
माँग के सिन्दूर मिटाए हो,
और कितने बहनों के शील का
हनन किए हो,
फिर भी इस तमाशबीन समाज में
नारी रक्षक कहलाते हो।
सबल होकर निर्बलों पर
विविध जुल्म ढाते हो,
फिर भी इस तमाशबीन समाज में
दलितों के मसीहा कहलाते हो।
अब बन बैठे भाग्य विधाता हो,
जात-पात, भाषावाद, क्षेत्रवाद,
की हवा देते हो,
अपना उल्लू सीधा करने
सीधे को छलते हो।
और कितना बखान करूँ
इन बहरूपियों की,
पराजय हो भारत माँ के
इन कपूतों की।