वीर भगत सिंह  Akshat Mishra

वीर भगत सिंह

Akshat Mishra

वो अंग्रेज़ गलत थे समझ गए,
वो वीर भगत संग उलझ गए।
 

वो उलझे घर के जयचंदो से,
कुछ राजनीती के फंदों से।
 

अगर उसूल कुछ टूटे होते,
कुछ राजनीती को भूले होते,
आज़ाद तो फिर भी होना था,
उस माँ को न फिर रोना था।
 

भारत माता को कर प्रणाम
कुछ चढ़ गए थे सूली पर,
कुछ दबे रहे चुप्पी साध कर
राजनीती की खोली पर।
 

वो देख के जलियावाला बाग
दिल में उठी थी एक आग,
चलो आज़ाद समझाएँ इनको इनकी भाषाओ में,
एक बार तो खरे उतरे इस देश की आशाओं में।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1012
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com