कितना अच्छा हो Ravindra Kumar Soni
कितना अच्छा हो
Ravindra Kumar Soniविरह सहा जो प्रेम में तेरे, कभी तो मिलन संभव हो,
मैंने देखे नयन तुम्हारे तुम भी तो व्याकुल हो।
जिस दर्पण में प्रेम दिखे वह दर्पण कितना सच्चा हो,
तुम जो मेरा प्रेम समझ लो तो कितना अच्छा हो।
जिस बारिश में तुम भीगो वह जल कितना निर्मल हो,
भीगे तुम्हारे अधरों को देखे वह मन कितना चंचल हो।
जिसमें प्रेम का रस ना हो वह फल कितना कच्चा हो,
तुम जो मेरे गीत को पढ़लो तो कितना अच्छा हो।
जिसमें पुष्प बहार ना हो वह उपवन कितना सूना हो,
जो मधुकर मधुहीन रहे वह कितना लज्जित हो।
जिसमें सब्र ओर ज्ञान ना हो वह मन कितना बच्चा हो,
तुम जो प्रिये मेरा नाम पुकारो तो कितना अच्छा हो।