आरज़ू VIKAS UPAMANYU
आरज़ू
VIKAS UPAMANYUआरज़ू ये नहीं कि
मैं तुम्हें पा लूँ,
कुछ सोचूँ न समझूँ
तुम्हें अपना बना लूँ।
जों दिल में है कैद बात
वो बता अपना बना लूँ,
लेकिन ये भी संभव नहीं कि
मैं तुम्हें पा लूँ।
चलो छोड़ो,
जीने दो मुझे मेरे हाल पर,
मैं ऐसा ही हूँ,
क्या करोगे मुझे जानकर?
अगर समझ जाओगे
मुझमें कैद दरियाओं को,
डूब जाओगे मेरे मन कि गहराई में,
फिर कभी सो नहीं पाओगे रात को।
चलो छोड़ो
जीने दो मुझे मेरे हाल पर,
मैं ऐसा ही हूँ,
क्या करोगे मुझे जानकर?
आरज़ू थी ‘उपमन्यु’ कि
एक लम्हा जी लूँ
तेरे कंधे पर सर रख कर,
लेकिन मुझे क्या पता था
सपने तो सपने होते हैं,
ये पूरे कब होते हैं।