दुराचार का खात्मा  SHUBHAM KALA

दुराचार का खात्मा

SHUBHAM KALA

एक बार फिर भूल सब इंसानियत
मानवता को तार-तार किया,
कभी निर्भया तो कभी आसिफा
महिला संवर्ग को शर्मसार किया।
 

पुरुषों की हवस का कब तक होंगी शिकार,
नन्ही जान भी सोच रही ये कैसे देश जन्म लिया।
 

कब तक ऐसा अत्याचार सहेंगी महिलाएँ?
वक़्त आ गया है अब कुछ जाए किया।
 

अफ़सोस कहें या कहें कैसी यह विडम्बना,
एकजुट होकर सब ने विरोध न किया।
 

रूह काँपने वाली इस निर्लज़्ज़ घटना के बावजूद,
हिन्द मुस्लिम के रूप में राजनीतिक मोड़ दिया।
 

दुराचार सम्बन्धी मामलों में कानून व्यवस्था
में संशोधन हेतु पुनः विचार जाए किया।
 

विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान में,
दुराचार की सज़ा को फांसी में तब्दील जाए किया।

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