मर गया मरीज डॉक्टर बिल फाड़ते रहे  RATNA PANDEY

मर गया मरीज डॉक्टर बिल फाड़ते रहे

RATNA PANDEY

एक पिता बेचारा गरीबी का मारा,
गरीब पिता का नन्हा सा बेटा
रुग्णावस्था में अस्पताल की चारपाई पर पड़ा था,
दर्द से कराहता शरीर उसका तप रहा था,
डॉक्टर और नर्स दवा दे रहे थे,
कोई इंजेक्शन लगाता, कोई ग्लूकोज़ चढ़ाता,
पिता बेटे के सिर को सहलाता,
डॉक्टर गरम शरीर से,
अपनी रोटी सेकने की तरकीब लगाता,
दिन प्रतिदिन दवाओं के बिल फड़वाता
किन्तु कोई लाभ नज़र नहीं आता,
एक पिता बेचारा अस्पताल की लापरवाही से हारा।
 

पिता की जेब खाली हो रही थी,
डॉक्टर की जेब ना जाने किस धागे की बनी थी
मानो कोई जादुई करामात उसमें हो रही थी,
भरने का नाम ही नहीं ले रही थी,
जेवर बिक गए, मकान बिक गया,
अस्पताल सब कुछ हजम कर गया,
एक पिता बेचारा हाथ मलता रह गया।
 

गम नहीं इस बात का कि जेब खाली हो गई,
रो रहा था अपनी तक़दीर पर कि उसकी गोद खाली हो गई,
पैसे गिनने में व्यस्त डॉक्टर उसके बेटे को ना बचा पाया,
लुटाकर सारी दौलत पिता ने बेटे को गँवाया,
एक पिता बेचारा अपनी किस्मत से हारा।
 

मृत देह के साथ अस्पताल ने लाखों का बिल थमाया,
तरस उन्हें ज़रा ना आया,
डॉक्टर ने अपना ईमान गँवाया,
अस्पताल का नाम मिट्टी में मिलाया,
एक पिता बेचारा बेटे को यहाँ लाकर पछताया।
 

तभी मीडिया के कान जागे
कैमरा लेकर समाचार लेने भागे,
किन्तु कोई नहीं था वहाँ,
सिर्फ़ ख़ामोशी थी, सन्नाटा था,
सन्नाटे के बीच सिसकियों का आना जाना था।
तभी किसी मीडियाकर्मी को दया आई,
पिता की हालत उसने कैमरे में दर्शाई,
हरकत में आ गए सभी,
डॉक्टर और अस्पताल पर जब ऊँगली उठी,
तभी बिलों की तलाशी में पुलिस जुटी।
पिता नहीं था बड़ा नामी, नहीं था धनी,
बेटा तो चला ही गया,
गरीबी, लाचारी ने,
पिता को समझौता करने पर मजबूर किया,
एक पिता बेचारा अपने हालात से हारा।
 

नहीं लड़ सका सूरमाओं से वह,
बाहुबली होता अगर तो गुनहगारों को सज़ा दिलवाता,
किन्तु गरीब पिता फिर परिवार की जिम्मेदारी कैसे निभाता,
एक पिता बेचारा था तक़दीर का मारा।
 

अस्पताल ने मजबूरी का फायदा उठाया,
मुसीबत से बचने के लिये मूलधन चुकाया,
बेबस पिता असहाय सा ख़ामोश हो गया,
और सूनी गोद के दुख के साथ,
अपनी रोज़ी रोटी में जुट गया,
एक पिता बेचारा बाहुबलियों से हारा,
हमारे देश का यही है कड़वा सच ,
जो सभी के सामने आया।

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