मन के भाव SUBRATA SENGUPTA
मन के भाव
SUBRATA SENGUPTAभय घट-घट में ऐसी दीमक है
जो सफलता रूपी पंछी के पर चाट लेती है।
ऐसे दीमक से न डरो,
परिश्रम और दृढ़ता के रथ से उड़ान भरो,
परिश्रम के ताप से दीमक जल जाएगी,
सफलता अपने आप ही कदम चूमेगी।
क्रोध ऐसी आग है,
जो ज्ञान को जला देती है।
ज्ञान रहित जीवन में,
केवल राख ही हाथ में आता है।
आशा ऐसा स्वप्न है,
जो नींद में आता है।
नींद खुल जाए तो
टूट कर बिखर जाता है।
फल की आशा मत करो,
कर्म किए जाओ।
कर्म के फल जो भी मिलें,
मिल बाँट के खाओ।
लालच ऐसी ज्वाला है,
जिसकी सीमा आँकी न जाए।
जितना घी डालोगे,
उतनी ही धधकती जाए।