चले चलो SUBRATA SENGUPTA
चले चलो
SUBRATA SENGUPTAजीवन की हर एक उषा,
मन में लिए उम्मीद की आशा,
अपने पथ पर चले चलो,
चले चलो, चले चलो।
धैर्य की गाँठ न खोलो,
न खोलो न खोलो,
जीवन में लिए आस,
चलते रहो बारह मास।
चाहे हो विवशता भरी हर रात,
या विषाद भरा प्रभात,
अपने जीवन पथ पर,
चले चलो, चले चलो।
माया, मोह का यह संसार,
वेदना भरी उपहार,
लिए साथ चले चलो,
चले चलो, चले चलो।
हर एक उषा, मन में लिए आशा,
जीवन की नवीन परिभाषा, परोपकार की अभिलाषा,
जीवन में आधार और भरोसा, साथ लिए चले चलो,
चले चलो, चले चलो।
तमस रूपी कंटक भरा मार्ग हो,
आशारहित साथियों की भरमार हो,
ज्ञान का दीया लिए चले चलो,
चले चलो, चले चलो।