ग़रीबी  Atul Mani Tripathi

ग़रीबी

Atul Mani Tripathi

ग़रीबी को एक पहचान मान लो,
अमीरों के हँसने का सामान मान लो,
और अगर भर गया हो मन मज़ाक से,
तो ग़रीबों को भी इन्सान मान लो।
 

ख़्वाबों में उनके एक डर है जो छुपाना है,
बच्चों की फीस, माँ की दवा की कश्मकश का सब फ़साना है,
बावजूद इसके आँखों में जो स्वाभिमान एक पुराना है,
शायद उनके जीने का बस एक यही ठिकाना है,
अगर मुमकिन हो सके तो कभी उनका हाल जान लो,
इन गरीबों को भी इन्सान मान लो।
 

ज़िन्दगी में इनके बहुत रिश्तेदार नहीं,
ग़रीबों के ग़रीब भी यार नहीं,
बाकी बचा बस एक ख़ुदा पे ऐतबार था,
पर शायद भगवान को भी इनसे प्यार नहीं,
इन ग़रीबों को ख़ुदा की तरबियत जान लो,
इन गरीबों को भी तो इन्सान मान लो ।

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