दो गज़ ज़मीन  RATNA PANDEY

दो गज़ ज़मीन

RATNA PANDEY

प्रलय के बाद दो इंसान प्रभु ने छोड़ दिए,
एक मनु और एक इला वो दोनों साथ में हो लिए।
बढ़ रहा था परिवार धरा पर, वो बहुत खुश थे,
खुशी के इस आलम में वो समझ ही ना पाए,
कब उनके बच्चे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई में बँट गए,
वह देखते ही रह गए पर कुछ न कर सके।
 

देखते ही देखते ज़माना बदल गया,
अब कहीं रावण तो कहीं दुर्योधन की सेना है,
भाई-भाई ने यहाँ आपस में एक दूसरे को घेरा है।
कहीं आतंकियों का जमघट, तो कहीं डाकू लुटेरे हैं,
इन सबने मिलकर दुनिया को घेरा है।
 

नहीं डरते हैं यह भगवान से इंसान से क्या डरेंगे,
लगा दो कितने भी पहरे पर पाप यह ज़रूर करेंगे,
यहाँ इंसान समझ नहीं पा रहा है,
दो गज़ ज़मीं के लिये ख़ून बहा रहा है।
 

उसे शायद यह एहसास ही नहीं है,
कि जिस ज़मीं के लिये वो लड़ रहा है
एक दिन उसी में समा जाएगा।
ज़मीं तो ज़मीं ही रहेगी,
इंसान ख़ुद मिट्टी बन जाएगा,
ना कुछ लाया था ना कुछ ले जाएगा,
दो गज़ ज़मीं के नीचे दफ़न हो जायेगा ।
दो गज़ ज़मीं के नीचे दफ़न हो जायेगा ।

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