उतरन  ABHISHEK KUMAR GUPTA

उतरन

ABHISHEK KUMAR GUPTA

फटे पुराने सबके कपड़े
पहन के वो इतराती है,
खाकर के वो सबके जूठन
अपनी भूख मिटाती है।
 

टूटी फूटी झोपड़ी उसकी
जिसमें वो सुख पाती है,
आसमान की ओर देखकर
नित नए ख्वाब सजाती है।
 

घर-घर में सब जानते उसको
वो मिलने जो सबसे आती है,
पूछने पर वो बड़े प्रेम से
इच्छा नाम बताती है।
 

ये हैं कहानी इक लड़की की
जो कलर्स हमें दिखलाती है,
घर-घर में जो रोज़ आ करके
हम सब के उतरन ले जाती है।

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