चुनाव ABHISHEK KUMAR GUPTA
चुनाव
ABHISHEK KUMAR GUPTAआजकल रंग उनके बदलने लगे हैं
पहले से ज़्यादा वो नम्र होने लगे हैं,
मतलबी यार बनकर जो कल तक रहे
जाने कैसे वो अब सुधरने लगे हैं।
काम हो चाहे जो रहते हैं आगे वो
सबसे दिनभर सलामी वो करने लगे हैं,
आए ना कुछ समझ है ये क्या माजरा,
कैसे ऐसे चमत्कार होने लगे हैं।
रंग और रूप के संग सूरत हैं बदली,
कपड़े खद्दर के अब उनको भाने लगे हैं,
चाय की चुस्कियों संग चाय की दुकान पर
वो नेताओं के जैसे भाषण देने लगे है।
गाँव के कुछ निठ्ठलों को संग लेकर वो
सुबह शाम घर-घर वो जाने लगे हैं,
हरकतें देखकर उनकी लगने लगा
दिन चुनावों के नजदीक आने लगे हैं,
देश को लूट खाने का जज़्बा लिए
धीरे-धीरे से वो आगे बढ़ने लगे हैं।