गर्व से जीना सीख लिया  RATNA PANDEY

गर्व से जीना सीख लिया

RATNA PANDEY

नहीं कर सका कभी ऐसा कुछ
कि कोई मुझ पर नाज़ कर पाए,
प्रतिबिम्ब देख कर स्वयं का
नेत्र स्वयं से नज़र ना मिला पाए।
 

सोचता था प्रभु ने मुझे ऐसा ही बनाया है,
नहीं बख्शा कोई हुनर कुछ कर दिखाने का,
छुपकर मूषक की तरह बिल में रहता था,
नहीं साहस किया कभी सर ऊँचा उठाने का,
किंतु एक दिन ऐसा आया एक वीर सिपाही को
मैंने तिरंगे में लिपटा पाया।
 

हज़ारों हाथों में फूलों की मालाएँ देखीं,
सलामी देती हुई बंदूके देखीं,
माँ की रोती हुई आवाज़
कर रही थी अपने पुत्र पर नाज़,
पिता की आँखों में आँसू देखे
किंतु सर गर्व से ऊँचा उठा देखा।
 

पुत्र कह रहा था मैं जाऊँगा पिता की जगह
अपने देश को बचाने को दुश्मनों को हराने को,
उम्र का था बड़ा कच्चा, किंतु इरादा था बड़ा पक्का।
बातों में उसकी विश्वास झलकता था,
कुछ कर दिखाने का जज़्बा आँखों से टपकता था,
नन्हें बालक की इस पुकार ने मुझे
झकझोर कर रख दिया।
 

एक नन्हा सा बालक मेरा
प्रेरणा स्रोत बन गया,
देख उस परिवार का साहस
डर मेरा जाने कहाँ गुम हो गया,
देशभक्ति से प्लावित भावना का साज़
मेरे दिल में बज गया।
 

देश का प्रहरी बनने का
मैंने मन में ठान लिया,
निकल पड़ा मैं बिल से बाहर
सर पर साफा बाँध लिया।
नन्हे बालक के एक वाक्य ने
देश का रक्षक मुझको बना दिया,
सर उठाकर जीना मुझको सीखा दिया।

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