पथ प्रदर्शक वह मेरे RATNA PANDEY
पथ प्रदर्शक वह मेरे
RATNA PANDEYछोटी सी काया थी मेरी
जिसे इतना बड़ा बना दिया,
जो लक्ष्य था मेरे जीवन का
उसकी सीढ़ियों तक मुझे पहुँचा दिया।
शिक्षा फिर मुझे दी ऐसी
कि लक्ष्य यदि पूरा करना है,
एक-एक सीढ़ी स्वयं चढ़ो
हाथ पकड़ अब नहीं चलना है,
आगे तुम्हें स्वयं बढ़ना है।
ख़ुद के बलबूते अगर चढ़ोगे
मंज़िल ख़ुद ही झुक जाएगी,
फैला कर अपनी बाँहें
स्वतः बाँहों में भर लेगी।
गर्व तुम्हें तब ख़ुद पर होगा
मंज़िल तुमने कैसे पाई,
लिखी स्वयं तक़दीर जो तुमने
वह मुकद्दर को भी रास है आई।
है दोष नहीं रेखाओं का
दृढ़ संकल्प अगर कर लोगे,
स्वाभिमान से जीवन जी लोगे
पिता की इस शिक्षा को
दिल से मैंने अपना लिया।
आज खड़ा हूँ उस मंज़िल पर
जिसका लक्ष्य मन में था ठान लिया,
नाज़ है अपने पिता पर मुझको
पथ प्रदर्शक वह मेरे हैं,
जीवन पथ की ऊँची नीची पगडंडी पर
चलना मुझे सिखा दिया
स्वावलम्बी मुझे बना दिया।
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इस कविता के माध्यम से मैंने यह दर्शाने का प्रयत्न किया है कि बचपन से ही पिता अपने बच्चों को स्वयं मेहनत कर आगे बढ़ना सिखाते हैं, ऐसे बच्चे ज़रूर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं और स्वावलम्बी होते हैं तथा अपनी सफल ज़िंदगी के लिए वह अपने पिता पर गर्व करते हैं।