ऐ ज़िन्दगी किस राह पर ले आई हो  Tanusha Sharma

ऐ ज़िन्दगी किस राह पर ले आई हो

Tanusha Sharma

ऐ ज़िन्दगी ये किस राह पर ले आई हो,
ऐसा लगता है कोई फँसी कैसेट सी हो गई हो,
जो आगे ही ना बढ़ रही हो,
मानो वक्त थम सा गया हो,
ज़िन्दगी ठहर सी गई हो।
 

जैसे समुद्र की लहरें उठ तो रही हों
पर किनारे तक नहीं आ रही,
जैसे कोई रमजान महीनों चल रहा हो
और ईद नहीं आ रही।
 

एक ख्वाहिश मन में दबी सी है,
एक दर्द सीने में दफन सा है,
ऐसा लग रहा है कोई काली अंधेरी रात है
और सुबह होने की कोई आस नहीं,
ज़िन्दगी की गाड़ी कहीं अटक सी गई है,
ट्रेन चल तो रही पर स्टेशन नहीं आ रहा।
 

अब तो ज़िन्दगी ऐसी हो गई कि
इंतज़ार है तो किसी चमत्कार का,
एक ऐसी रोशनी का जो
काली अंधेरी रात को उजला कर दे,
एक ऐसे चांद का जो ईद करा दे,
एक ऐसे हवा का जो लहरों को किनारा करा दे।
 

कभी सोचती हूँ तो बहुत अजीब लगता है
यह चुनौतीपूर्ण जीवन कहाँ ले आया है,
अब तो बस यह देखना है
कब यह कैसेट फिर चलने लगे,
आगे कौन सा मुकाम आए।

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