दिशाहीन समाज  SUBRATA SENGUPTA

दिशाहीन समाज

SUBRATA SENGUPTA

आधुनिक समाज है गतिमान,
उस गतिमान वायुयान के समान
जो लम्बे समय उड़ान भरने के बाद,
उसके सूचना प्रसारण से मिलता है यह संवाद
कि हम अपनी दिशा भटक चुके हैं,
क्योंकि वायुयान के दिक्सूचक विकल हो चुके हैं।
दिक्सूचक यन्त्र के विकलता से
हमारी दिशा कुछ और थी
कुछ और हो गई,
क्योंकि दिकसूचक यन्त्र जो थी,
वह एकाएक विकल हो गई।
 

ऐसे ही समाजरूपी वायुयान में हम सवार हैं,
हमारी कथनी करनी से हम बेखबर हैं,
क्या हम विचार शून्य हो चुके हैं?
या हमारी विचारधारा अवैज्ञानिक है?
अपनी विचार धारा को वैज्ञानिक बनाओ,
अपना हर कदम सही दिशा की ओर बढ़ाओ।
एकता की ऊर्जा से दिक्सूचक बनाओ,
अपने स्वार्थ हेतु समाज को न भटकाओ।

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