सवालात! Mohanjeet Kukreja
सवालात!
Mohanjeet Kukrejaपिछले चंद रोज़
माँ अपनी नीम-बेहोशी में
कुछेक सवाल लगातार
पूछती रही मुझसे।
जवाब किसी का नहीं था
मगर सवाल तो सवाल थे,
कानों में गूँजते थे रात भर !
कल आख़िर उसका पूछना बंद हुआ,
लेकिन सवाल कानों में बसे रहे,
आज माँ को चिता से समेट कर
गंगा में बहा आया हूँ।
शायद अब सिर्फ़ कानों में गूँजते
सवालात का सिलसिला भी थम जाए;
और कोई ना मुझसे पूछे कभी,
'मैं क्या करुँ...मैं कहाँ जाऊँ?"