है कैसा ये संसार? VIKAS UPAMANYU
है कैसा ये संसार?
VIKAS UPAMANYUहै कैसा ये संसार?
चारों ओर हवस है
फैला है नंगा व्यापार,
सबकी नज़रें मेरे जिस्म पर,
जों करती है बार-बार ‘वार’।
सुनो, अंधी है ये दुनिया
चकाचौंध की है बीमार,
मेरे अपनों ने भी बदला है
देख मुझको अपना व्यवहार,
सम्बन्धों को भी न देखे
कर दे सब तार-तार।
मेरे मन में काग शोर मचाते,
क्यों न आए वो मेरे द्वार,
अश्रु निकले मेरे नयनों से
जो कर गए मेरा श्रृंगार।
संकुचित न होता मन मेरा
जो तुम आ जाते एक बार,
हिम्मत नहीं इनकी होती
जों तुम भी बन जाते,
मेरे पथ पखार।
है कैसा ये संसार?
चारों ओर हवस है
फैला है नंगा व्यापार,
सबकी नज़रें मेरे जिस्म पर,
जो करती हैं बार-बार ‘वार’।