रिश्तों का शब्दकोश Priyanka Mohekar
रिश्तों का शब्दकोश
Priyanka Mohekarकितनी अजीब है ये ज़िन्दगी,
किसी के पास सब कुछ है
तो किसी के पास सब अधूरा सा है।
इन्साफ की बातें हर कोई करता है,
पर क्या ये ज़िन्दगी हमारे साथ इन्साफ करती है?
इन्सान हमेशा रिश्तों के पीछे दौड़ता है,
कभी माँ, बाप, भाई, बहन, दोस्त, आदि।
उनके हर एक पड़ाव पे उन्हें नए लोग मिलते हैं,
कहा जाता है कि हर कोइ आप में
कुछ बदलाव के लिए आता है,
कोई सीख देके जाता है तो कोई सबक।
पर मैं हमेशा ही सोचती हूँ कि अगर
हर कोई सिर्फ जाने के लिये आता है,
तो कितने वीराने हैं हम
जो एक रिश्ते को भी संभल नहीं सकते,
और फिर बाहाने दिए जाते हैं,
कितनी अजीब है ये ज़िन्दगी।
हम हमेशा रिश्तों में सही-गलत,
सच-झूठ आदि ढूँढ़ते हैं,
पर क्या कभी ये सोचा है कि हर इन्सान के लिए
सही-गलत, सच-झूठ की परिभाषा अलग होती है,
जब परिभाषा ही अलग-अलग तो मेल कैसे?
क्या ये ज़रूरी नहीं कि हम उन्हें
जैसे हैं वैसे ही अपना लें?
क्या ये उनकी भूल है कि वो अलग हैं?
जब हमारे एक हाथ की पाँच अँगुलियाँ ही अलग हैं,
जब इस धरती पे सारे प्राणी,
पिशाच, इन्सान इत्यादि सब ही विपरीत हैं,
तो क्या ये सोच कि हम सबकी समझ
लोगों को लेके या अपनी ज़िन्दगी को लेके
एक जैसी ही हो सही है?
कितने अजीब हैं इन्सान,
समझ ही नहीं पाते कि क्या खो रहे हैं या पा रहे हैं,
कितनी अजीब है ये ज़िन्दगी।