क्यों शर्मसार फिर होती है B Seshadri "Anand"
क्यों शर्मसार फिर होती है
B Seshadri "Anand"क्या हुआ मनुज मानवता को क्यों शर्मशार नित होती है,
हर रोज़ कोई न कोई दामिनी रौंदी, नोची जाती है।
बालपन की मुस्कान मधुर चंचल स्वभाव की गोपी थी,
धर्म, जाति, मजहब से पहले वो मानवता की बेटी थी।
कैसा वहशी मन था उनका ये दैत्य कहाँ से आए थे,
है सुना कि खाकी में रक्षक भी भक्षक बनकर आए थे।
कैसा संवेदनहीन हुआ है वर्तमान को देखो तो,
क्या कारण है इन घटनाओं का आँख खोल कर देखो तो।
स्वार्थ सिद्धि के चक्कर में लाचार हुआ है संविधान,
सौ, दो सौ, हज़ार लेकर हो रहा यहाँ अब समाधान।
न्याय तंत्र भी लगे खोखला न्याय माँगें न्यायाधीश यहाँ,
नन्हीं कलियों की आहट सुन मारी जाती कोख जहाँ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ यह बात नहीं कहनी पड़ती,
गर बेटे के पालन-पोषण में संस्कार और सख्ती रहती।