इतना सन्नाटा क्यों है RATNA PANDEY
इतना सन्नाटा क्यों है
RATNA PANDEYआज भी एक नन्हीं कली को रौंद डाला,
आज भी एक परिवार पर मातम छाया,
किंतु दुर्भाग्य देखिए कि धर्म ही बीच में आड़े आया।
नहीं जानती नन्हीं सुकुमारी धर्म क्या है,
फिर भी धर्म की लाठी से उसके
जज़्बातों को कुचल डाला,
धर्म बुरा नहीं होता
किंतु इंसान ने ही धर्म को बुरा बना डाला।
विडम्बना देखिये हमारे समाज की,
किसी बच्ची के लिए हज़ारों आवाज़ें उठती हैं
और किसी बच्ची के लिए समाज में सन्नाटा छा जाता है,
इतना सन्नाटा कि बोलने में शायद इंसान घबरा जाता है।
सब कुर्सी की माया है खेल है राजनीति का,
इस राजनीति ने घृणात्मक पाप को भी अपनाया है,
इसलिए आज देश में इतना सन्नाटा छाया है।
तड़प रही है नन्हीं सी गुड़िया माँ के आँचल में,
यदि दुनिया छोड़ गई तो छोड़ गई,
किंतु यदि जीवित रही तो
कैसा होगा उसका भविष्य,
क्या यह सदमा वह सहन कर पाएगी?
क्या दरिंदगी जो उसने भोगी है
कभी उसे भुला पाएगी?
क्या इस दुःख को बर्दाश्त कर पाएगी
कि उसकी बरबादी पर देश में इतना सन्नाटा क्यों?
आज क्यों कोई आवाज़ नहीं आती,
कोई परछाई उससे मिलने क्यों नहीं आती,
वह तो छोटी सी नासमझ नन्हीं सी जान है,
इतना बड़ा चक्रव्यूह वह समझ नहीं पाएगी।
अपने ग़मों के साथ तन्हा ही रह जाएगी,
या तन्हा ही मर जाएगी,
उसके परिवार को सांत्वना देने की
याद किसी को भी नहीं आएगी।
हे प्रभु दो उस नन्हीं सी जान को शक्ति
इतनी कि पुनः उठकर वह संभल जाए,
और इतनी शक्तिमान बन जाए कि कोई
हिम्मत ना कर सके उसे हाथ लगाने की,
हद से गुज़र जाने की।
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दरिंदगी ने आज हमारे देश को शर्मसार कर दिया है। नन्हीं बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कार मानवता पर एक ऐसा धब्बा है जो कभी मिट नहीं सकता और जब इन घटनाओं को धर्म के साथ जोड़ा जाता है तो इंसान की मानसिकता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लग जाता है। अपनी कविता के माध्यम से मैंने इसी बात पर प्रकाश डालने की कोशिश की है।