प्रकृति माँग रही है जवाब RATNA PANDEY
प्रकृति माँग रही है जवाब
RATNA PANDEYप्रकृति माँग रही है जवाब,
नहीं थी मैं ऐसी जैसा तुमने मुझे बना दिया,
इंसाफ चाहिए मुझको,
तुमने कहाँ से कहाँ मुझे पहुँचा दिया।
मानव के अनुकूल ही मैं रहती थी
किन्तु कर प्रदूषण इतना तुमने
सूर्य को क्रोध दिला दिया,
दुनिया के तापमान का स्तर पूरा तुमने हिला दिया।
प्रदूषण से लथपथ काला वस्त्र
दुनिया को तुमने ओढ़ा दिया,
छीनकर हरियाली मेरी,
मेरा गहना चुरा लिया।
काटकर मेरे अंग प्रत्यंग
मुझे अपाहिज बना दिया,
माँ बनकर जीवन देती थी,
तुमने सब कुछ मुझसे छीन लिया।
नाश कर मेरा तुमने
अपना ख़ुद विनाश किया,
नहीं बचेगा पास मेरे तो
तुमको क्या दे पाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी।
न्यायालय में जाऊँगी पर
काली पट्टी वाली देख नहीं कुछ पाएगी,
न्याय के लिये गुहार लगाऊँगी
पर वह इतने वर्ष लगाएगी,
निर्णय ना दे पाएगी।
तब तक तो मैं पूरी नष्ट कर दी जाऊँगी,
इन्सानों के हाथों लूटी जाऊँगी,
चाहकर भी मैं धरा के विनाश को
रोक नहीं फ़िर पाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी।
नहीं हूँ द्रोपदी कि कान्हा को मैँ बुला पाऊँ,
नहीं हूँ सीता कि राम को खबर भिजवा पाऊँ,
बचाओ-बचाओ की पुकार मेरी कौन भला सुन पाएगा,
लालच से भरी इस दुनिया में
शायद मैं ज़िंदा ही ना रह पाऊँगी।
इन्सान के हाथों मारी जाऊँगी,
मर जाऊँगी मैं ख़ुद ही तो
तुम्हारी पीढ़ियों को कैसे बचाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी।
गहनों से सजी धजी सुन्दर प्रफुल्लित
मैं दुनिया में आई थी,
तुमने सब कुछ मेरा चुरा लिया,
मुझे कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया,
तुम्हारे दिये एक-एक घाव मैं
तुम्हारी संतानों को दिखलाऊँगी,
उनके लिये मैं कुछ भी ना कर पाऊँगी
बेबस मैं हो जाऊँगी,
बेबस मैं हो जाऊँगी।
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प्रकृति आज इंसान से जवाब माँग रही है कि मैं तो ऐसी कभी नहीं थी तुमने मुझे बरबाद कर दिया। यदि मुझे बरबाद करोगे तो मैं तुम्हारी संतानों के लिए कुछ भी ना कर पाऊँगी, मैं तो स्वयं ही तुम्हारे द्वारा नष्ट कर दी जाऊँगी। अपनी कविता के माध्यम से मैंने यही बात स्पष्ट करने का प्रयास किया है।