चार बरस  DEVENDRA PRATAP VERMA

चार बरस

DEVENDRA PRATAP VERMA

किसी नई मंज़िल की ओर
पहला कदम रखते हुए,
बीटेक की आखिरी सीढ़ियों से
उतरते हुए,
दिल के किसी कोने में,
सपनों के बिछौने में,
बीते हुए पलों का मधुर संगीत
किसी पुराने बरगद की
शीतल छाँव की भांति,
अपने साए में कुछ देर और
ठहर जाने का निवेदन कर रहा है।
और इस निवेदन के प्रकाश में चमकते
पिछले चार वर्ष बड़े गर्व से
मेरे जीवन में अपने वर्चस्व की
व्याख्या कर रहे हैं।
 

रिमझिम बरसात है
अभी कल ही की तो बात है,
अपने बस स्टॉप पे खड़े हम लोग
कॉलेज बस का इंतजार कर रहे हैं;
और रैगिंग पर उठने वाले वाद-विवाद से
रोमांचित हो रहे हैं।
वहीं हमसे कुछ दूर खड़ा
जाने किस बात पर अड़ा,
सीनियर्स का एक समूह
रह-रह कर चिल्ला रहा है,
और रैगिंग की विभिन्न
योजनाएँ बना रहा है।
 

अद्भुत मुलाक़ात है
अभी कल ही की तो बात है,
कॉलेज बस के अंदर
हम लोग जैसे बंदर,
सीनियर्स रूपी मदारी के हाथों की
कठपुतली की भांति कूद रहे हैं,
और जाने अनजाने एक दूसरे
के कानों में अपनी-अपनी प्रतिभा
के मंत्र फूँक रहे हैं।
वो देखो "हिमांशु" मूँगफली बेच रहा है,
और “मेहंदी” गाने गा के सबका
ध्यान खींच रहा है,
परिचय दे देकर "राजकुमार" बेहाल है,
सबसे जुदा मगर "कृष्णा" की चाल है।
 

चंचल प्रभात है
अभी कल ही की तो बात है,
कॉलेज बस में गूँजते नारे,
नैनी ब्रिज पर गंगा मैया के जयकारे,
बाहर खड़े लोगों का
ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं,
और उल्लास की आभा में दमकते चेहरे
अपने आनंद की कहानी कह रहे हैं।
"अनंत" जी का जोश
नया गुल खिला रहा है,
सारे चुप हो जाओ
देखो "बाँके लाल" आ रहा है।
 

क्या अजीब इत्तेफाक़ है
अभी कल ही की तो बात है,
"वैभव शर्मा" अपने मोटापे से परेशान है,
कहता है योग करो तो
सब मुश्किल आसान है,
"अर्चना" और "पूजा" का
गोल-गप्पे खाने का प्लान है,
पर उन्हें शायद पता नहीं
आज बंद दुकान है।
 

मौज मस्ती की सौगात है
अभी कल ही की तो बात है,
किसी क्लास में कोई टिफिन खुला है
पर ये क्या ! टिफिन जिसका है
उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला है।
इधर "अपूर्व" के चुटकुलों का
एक दौर चला है,
लगता है अपना पूरा कॉलेज ही चुटकुला है।
"स्वप्निल सर" कह रहे
कि "धीरज" होशियार है,
सब उसकी बात मानो
वो क्लास का सी-आर है।
अब "धीरज" कहेगा,
तभी क्लास में आएँगे
नहीं तो सारे लोग बँक पे जाएँगे।
 

फ्री पीरियड है
चलो लाइब्रेरी बुला रही है
"अपूर्व" की टोली वहाँ भी
महफिल सजा रही है।
"शुचिता" "रहमान" के
किस्से सुना रही है,
और आलसी अनिल को
नींद आ रही है।
"उपाध्याय" अपने ज्ञान कुंज से
ज्ञान के कुछ पुष्प लाया है,
और हमारी नीरस निरर्थक वार्ता को
सरस सार्थक बनाया है।
 

उधर "हिमांशु" और "दीपिका" में
हो रही लड़ाई,
"अर्चना" ने "धीरज" को पकड़ा
तो उसकी शामत आई।
जाने किस विचार में
डूबे हैं "पवन भाई",
आलू खा कर "इंस्पेक्टर" ने है
खूब धूम मचाई।
एग्जाम आ गए हैं
अभी तक की नहीं पढ़ाई,
पर सेमेस्टर एग्जाम की
परवाह किसको है भाई!
हम तो चले चाचा की
गुमटी के तले,
जिनको है परवाह
वो हमारे हिस्से का भी पढ़े।
हम तो एग्जाम से एक दिन पहले
किताब खरीदने जाएँगे,
मिल गई तो ठीक है
नहीं तो तक़दीर आजमाएँगे।
 

महके हुए जज़्बात हैं
अभी कल ही कि तो बात है,
"वैभव" "सुमित" और "तृप्ति" अपने
रिश्ते को एक नया नाम दे रहे हैं,
और अपनी दोस्ती को
एक नया आयाम दे रहे हैं।
निधि ने अपनी क्लास में
एक मंच सजाया है,
जहाँ सब ने सब की खातिर
कोई गीत गुनगुनाया है।
ये गीत ही कल प्रीत की
प्रभा में काम आएँगे,
और रूठे हुए अपने
मनमीत को मनाएँगे,
और और रूठे हुए अपने
मनमीत को मनाएँगे।

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