जीवन दायिनी आ गई RATNA PANDEY
जीवन दायिनी आ गई
RATNA PANDEYलो फिर जीवनदायिनी आ गई
संजीवनी हमें थमा गई,
भर गए नदी नाले सभी
धरती पानी से छलछला गई,
प्रसन्न हुए किसान सभी
हर घर में ख़ुशहाली छा गई,
लो फिर जीवनदायिनी आ गई
संजीवनी हमें थमा गई।
तरु भी झूम रहे हैं
पंछियों में भी नई ताज़गी आ गई,
झुलस रहे थे अग्नि की ज्वाला में जो तन,
उन पर भी ठंडाई छा गई,
लो फिर जीवनदायिनी आ गई
संजीवनी हमें थमा गई।
स्वेद से टपकती बूंदों को
एक साथी की तलाश थी,
रिमझिम फुहार बनकर,
स्वेद की बूंदों से मिलकर,
उनको भी ठंडक दिला गई,
जोश पुनः उनमें थमा गई,
लो फिर जीवनदायिनी आ गई
संजीवनी हमें थमा गई।
उठा लो सुख २,४,१० वर्ष
जो मिलता है,
फिर तो जीवनदायिनी ना जाने
कहाँ लुप्त हो जाएगी,
संजीवनी हमारे हाथों से
गुम हो जाएगी,
नदी नाले सब सूख जाएँगे,
पंछी जीना भूल जाएँगे,
स्वेद की बूंदों के संगी
साथी छूट जाएँगे,
वृक्ष तो पहले ही लालच
की भेंट चढ़ जाएँगे।
समझ सकते हो
कैसा होगा फिर कल,
जीना हो जाएगा दूभर,
आओ सारे मिलकर
यह शपथ ले लो,
जीवनदायिनी को लुप्त होने से
पहले ही उसे संजीवनी दे दो।
प्रकृति ही उसकी संजीवनी है,
यदि प्रकृति को हम बचा लेंगे
तो युगों-युगों तक जल का सुख उठा लेंगे।
और फिर युगों-युगों तक यह दोहरा पाएँगे,
कि लो फिर जीवनदायिनी आ गई
संजीवनी हमें थमा गई।