नई भोर  VIKAS UPAMANYU

नई भोर

VIKAS UPAMANYU

अंकुरित हुई एक 'लता'
लगा अपने जज़्बों का जोर,
करने हैं कुछ संकल्प पूरे ‘उपमन्यु’
हुई अब एक नित नई भोर।
 

खामोशी मे थी राहें सबकी,
गुंजन कर रहे थे मोर,
कोयल देखो शान्त थी कैसे,
कौआ कर रहा था शोर।
 

गरज रहा बादल अम्बर से,
छा गई थी घटा घनघोर,
मच गया बबंडर जग में,
हो रही थी त्रासदी चारों ओर।
 

अब अभयदान प्रेम कर दो,
मुश्किलें फैली हैं चारों ओर,
कठिन है पथ, मंज़िल नहीं है दूर,
बिखरी हैं किरणें हो गई नई भोर।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1351
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com