नई भोर VIKAS UPAMANYU
नई भोर
VIKAS UPAMANYUअंकुरित हुई एक 'लता'
लगा अपने जज़्बों का जोर,
करने हैं कुछ संकल्प पूरे ‘उपमन्यु’
हुई अब एक नित नई भोर।
खामोशी मे थी राहें सबकी,
गुंजन कर रहे थे मोर,
कोयल देखो शान्त थी कैसे,
कौआ कर रहा था शोर।
गरज रहा बादल अम्बर से,
छा गई थी घटा घनघोर,
मच गया बबंडर जग में,
हो रही थी त्रासदी चारों ओर।
अब अभयदान प्रेम कर दो,
मुश्किलें फैली हैं चारों ओर,
कठिन है पथ, मंज़िल नहीं है दूर,
बिखरी हैं किरणें हो गई नई भोर।