जुस्तजू-ए-हमराह Mohanjeet Kukreja
जुस्तजू-ए-हमराह
Mohanjeet Kukrejaख़ुद इश्क़ का फ़साना था
तेरी आँखों का दीवाना था..
जिसकी सुबह तू...शाम तू,
हयात का दूसरा नाम तू !
टूट कर जिसने तुझे चाहा,
हर अदा को तेरी सराहा..
इबादतों में लिया तेरा नाम,
ओ बुत-परस्ती का इलज़ाम !
सिर्फ तेरी ही थी एक चाह,
तू ही बस जुस्तजू-ए-हमराह
हर सोच में...हर एक बात में,
तू बसी थी जिसकी ज़ात में
जिसके ज़ेहन में थी तू नक़्श,
मर गया कहीं कल वो शख़्स