मेघ  Prabal Pratap Singh

मेघ

Prabal Pratap Singh

लम्बी यात्रा से आए हैं मेघ
इस धरा को करने ओतप्रोत,
कण-कण सूखा और व्याकुल,
पौधे और पशु -पक्षी होते विकल।
 

ज्वाला की तपिश से तपता जीवन,
छाँव ढूँढता सूरज की प्रचंडता से हर पथिक,
पतझड़ ने वृक्षों का श्रृंगार हरा,
शिथिल सी पड़ी गई है धरा।
 

लाखों टकटकी आसमाँ पर,
एक युवा बादल मतवाला सा घुमड़ा,
कत्थक की लय पर थिरकता सा,
घुँघरू की छनछनाहट सी फुहार।
भिगो दिया धरा का तन मन सन्तृप्त,
हो गया पपीहे का मन पुलकित।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1022
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com