मेघ Prabal Pratap Singh
मेघ
Prabal Pratap Singhलम्बी यात्रा से आए हैं मेघ
इस धरा को करने ओतप्रोत,
कण-कण सूखा और व्याकुल,
पौधे और पशु -पक्षी होते विकल।
ज्वाला की तपिश से तपता जीवन,
छाँव ढूँढता सूरज की प्रचंडता से हर पथिक,
पतझड़ ने वृक्षों का श्रृंगार हरा,
शिथिल सी पड़ी गई है धरा।
लाखों टकटकी आसमाँ पर,
एक युवा बादल मतवाला सा घुमड़ा,
कत्थक की लय पर थिरकता सा,
घुँघरू की छनछनाहट सी फुहार।
भिगो दिया धरा का तन मन सन्तृप्त,
हो गया पपीहे का मन पुलकित।