अधूरा रह गया गीत मेरा! Ravindra Kumar Soni
अधूरा रह गया गीत मेरा!
Ravindra Kumar Soniमिलन के मैंने गीत लिखे, लिखा सुरों को सींच-सींच,
सुधी तुम्हारी प्रीत बनाई, लिखा क्षणों को खींच-खींच,
तुम पर जब यह गीत लिखे, गाते थे संग गगन धरा,
तुम जबसे हो गए पराए, रुठ सा गया संगीत मेरा,
अधूरा रह गया गीत मेरा !
यह मन मेरा हारिल, बहे क्षणों को पीते-पीते,
प्रीत तुम्हारी मन मन्दिर में, बढ़ती नित रीते-रीते,
जब तुम वर्णों से सजती, रहता था मन हरा भरा,
तुम जबसे हो गए पराए, रूठ सा गया चित्त मेरा,
अधूरा रह गया गीत मेरा !
मिली विजय बहार प्रिये, संग तुम्हारे जीते-जीते,
मिलते सुगंध के दीप जगत में, अंधकार थे बीते-बीते,
बढ़ती नदी सा जीत लिए, तुम तक बहती थी धारा,
तुम जबसे हो गए पराए, रूठ सा गया सुजीत मेरा,
अधूरा रह गया गीत मेरा !
बढ़ेगा प्रेम नित तुमसे, इस सदी के जाते-जाते,
होगा मिलन अपार प्यार से, प्रेम का युग आते-आते,
बनेगा प्रेम से शीतल, सागर का यह जल खारा,
तुम जबसे हो गए पराए, रूठ सा गया मीत मेरा,
अधूरा रह गया गीत मेरा !