मंज़िल की ओर चलते रहो  Tanusha Sharma

मंज़िल की ओर चलते रहो

Tanusha Sharma

मन में कुछ पाने की ठान लो
तो उसके पीछे फिर चलते रहो,
तेज धूप, बारिश या तूफान हो
तुम बिना रूके, बिना हारे चलते रहो।
 

भले ही अनगिनत काँटे हों सफ़र में,
तुम उन्हें तोड़कर चलते रहो,
नैया किनारे को ज़रूर आएगी,
कश्ती में पतवार बना कर चलते रहो,
मंज़िल की ओर चलते रहो।
 

बीज जैसा लगाओगे फल वैसा पाओगे,
ऐसा करो कि ना कोई तुम्हें रोक सके ना तुम खुद को रोको,
जितने भी पत्थर रास्ते पर आएँ तुम उनका स्तंभ बनाते चलो,
जो बेड़ियाँ तुझसे लिपट रही हों उनको अपना शस्त्र बनाते चलो,
जैसा भी सांचा क्यों ना हो तुम खुद को उसमें ढालते चलो,
भीड़ में खोने का डर मत करो,
तुम खुद अपना रास्ता बनाते चलो,
मंज़िल की ओर चलते रहो।
 

गिरो, संभलो, फिर गिरो,
पर मन में हार मत मानो और ना ही हताश हो,
कुछ ना कुछ नवनिर्माण करते चलो,
लौ को मशाल बनाते चलो,
दिलों में जो बवंडर उठ रहा हो
उस बिजली को हौसला बनाते चलो,
जो आँखों में ख्वाब लिए हो,
उस ख्वाब को मुकम्मल करते चलो,
मंज़िल की ओर चलते रहो।

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