पाखंड की दुकानें RATNA PANDEY
पाखंड की दुकानें
RATNA PANDEYदेश के कोने-कोने में अत्यधिक भीड़ एकत्रित होती है,
प्रवचन सुनने वाले शौकीनों की धक्का मुक्की तक होती है,
भक्ति भाव में तल्लीन भक्तगण ऐसे मंत्र मुग्ध होते हैं,
इतनी अंध श्रद्धा होती है कि सुध बुध अपनी खो देते हैं।
सुन प्रवचन धर्म गुरुओं के उन्हें भगवान मान लेते हैं,
बहु बेटियों पर आती वासना की नज़रों को पहचान नहीं पाते हैं,
और ढोंगी इसी बात का लाभ उठा मनमानी कर जाते हैं,
और धर्म की आड़ में कुकृत्यों को अंजाम दे जाते हैं।
मुँह से प्रवचन देने वाले अंदर से नापाक इरादे रखते हैं,
गिद्ध जैसी पैनी नज़रों से शिकार ढूँढ़ते रहते हैं,
और मासूम कलियों को पकड़ उनका शिकार करते हैं,
और मसलकर उनको आशीर्वाद का नाम देते हैं।
पकड़कर ये दरिन्दे सलाखों के पीछे भेजे जाते हैं,
लेकिन लानत है ऐसे भक्तों पर जो असलियत समझ नहीं पाते हैं,
इसी नासमझी के कारण यह अपनी दुकान चलाते जाते हैं,
और हर माह दो माह में ऐसे ही किस्से दोहराए जाते हैं।
अंदर जो कुछ होता है ना जाने कितने सब कुछ जानते हैं,
किन्तु चंद रुपयों की ख़ातिर अपना ईमान बेच आते हैं,
आँख कान मुँह बंद कर अन्याय को हरी झंडी दिखाते हैं,
और इस तरह वह भी पाप के भागीदार बन जाते हैं।
धर्म ग्रंथों से ज़्यादा तो यह कुछ भी नहीं जानते हैं,
यह महान ग्रंथ हम घर में भी पढ़ सकते हैं,
और ऐसे कपटी पापियों से स्वयं को दूर रख सकते हैं,
और पाखंड से भरी उनकी दुकानों पर हमेशा के लिए
ताले लगाए जा सकते हैं।
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यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि धर्मगुरु बनकर कुछ लोग धर्म की आड़ में व्यभिचार करते हैं, विश्वासघात करते हैं तथा जनता को मूर्ख बनाते हैं। फिर भी जनता समझ नहीं पाती और अंध भक्ति में उन्हें आदर सत्कार देती है और विश्वास से पूजती रहती है। अपनी कविता में मैंने यही बात स्पष्ट करने का प्रयास किया है।