अनामिका की तस्वीर VIMAL KISHORE RANA
अनामिका की तस्वीर
VIMAL KISHORE RANAस्वपन है, यथार्थ है,
क्या इन विचारों का अर्थ है,
या मेरा ही कुछ स्वार्थ है,
उस अजनबी, अनामिका की तस्वीर।
जो मूल्य हैं अभी मेरे
बस जाएँ उन में ही सहज,
या भविष्य के मूल्यों में
रह जाए आकर्षण महज,
कस्तूरी की तरह महके घर-आँगन में,
या चाँद की तरह कल्पित रहे मेरे मन में।
कस्तूरी है या चाँद है,
या मेरा ही उन्माद है,
न बुझने वाली प्यास है,
उस अजनबी, अनामिका की तस्वीर।
दिखती है कभी धुंधली-धुंधली,
मिलती है कभी चलती-चलती,
खो जाती है फिर यादों में,
एहसासों में, जज़्बातों में,
मैं ढूँढ रहा तन्हा-तन्हा,
मैं पलट रहा पन्ना-पन्ना,
मिल जाए कहीं, दिख जाए कहीं,
उस अजनबी, अनामिका की तस्वीर।
मिल सकता नहीं वह सब कुछ ही
जो चाहता है इंसान कभी,
मिल जाता है गर जो कुछ भी,
बस उतने में मिल जाए खुशी,
मृग तरसा है कस्तूरी को,
कस्तूरी पल-पल साथ में है,
ऐसे ही लगता साथ ही है,
उस अजनबी अनामिका का अस्तित्व।