विरासत में Aanchal Singh
विरासत में
Aanchal Singhसाहस!
उसे अपनी दुबली पतली माँ से मिला था,
विरासत में।
जहाँ हज़ारो ख़्वाहिशों का एक गुलदस्ता बना सके,
वो माली बनने की कला!
उसे गली में घूमती किसी औरत से मिली थी
बस देखने भर में।
वो चाहती तो कभी भी भाग सकती थी,
पर सामना करने का गुण
उसे अपनी बहन से मिला था,
कलह की किसी रात में।
अपंग नहीं थी वह,
फिर भी अनसुना अनदेखा करना
उसने त्यागी हुई किसी औरत से सीखा था,
चुभन भरी सी किसी शाम में।
घूरती नज़रों के बीच दिल उसका भी टीसता था,
पर खिलखिलाकर हँसना
उसने अपनी छोटी बच्ची से सीखा था,
फटकार के बाद भी छिपी दुलार में।
लक्ष्मण रेखा और सीता की मर्यादा उसे भी मालूम थी,
पर आवाज़ उठाना
उसने आंदोलन में शामिल भर्राई आवाज़ों से सीखा था,
तपती सी किसी दुपहर में।
लहलहाता आँचल उसे भी भाता था,
रंग उसे भी प्यारे थे,
पर बेरंग सी साड़ी में पूरी उम्र गुज़ार देने की तपस्या
उसे किसी विधवा से मिली थी,
त्यौहारों की एक शाम में।
अकेलेपन में वो अब भी रोती है,
सवाल कभी ख़ुद से कभी दूसरो से करती है,
औऱ फिर जवाब देना
उसने कहीं खुद में छिपी किसी और औरत से सीखा था,
आईने के सामने खड़ी मद्धम रोशनी में।