कहाँ है ईश्वर Pradeep Kumar Rajak
कहाँ है ईश्वर
Pradeep Kumar Rajakहर दम यही बात सताती है,
ज़िन्दगी जो चुपके से बताती है,
विनाश से, विशाल ये ब्रह्मांड बनी है,
गलती से, यूँही अपनी धरती जन्मी है।
निराशा से बचाने, हमें भटकाया गया है,
जानबूझकर पाठ गलत पढ़ाया गया है।
ना हमारा जीवन किसी की अद्भुत माया है,
ना ये संसार किसी कलाकार की छाया है।
क्यों उसकी दुनिया में सर्वत्र व्याप्त ये असमानता है,
निर्बल को बिलखते देखना क्या उसकी महानता है?
दुःख, कष्ट व पीड़ा में छुपी उसकी कौन सी लीला है,
बच्चों के रोते मरते दृश्य ही क्या उसके पसंदीदा हैं?
क्यों हर तरफ़ छाई इतनी नाइंसाफी है,
भले के साथ बुरा, ईमान पे भारी बेईमानी है।
सच सहमा डरा सा, झूठ उसपर हावी है,
क्यों उसकी तराजू में इतनी बड़ी खराबी है?
लुढ़कते पत्थर पर पनपे हम कीड़े मकोड़े हैं,
फ़र्क इतना बस, पशु वस्त्रहीन, हम कपड़े ओढ़े हैं।
जानवर जैसे जर, ज़मीन, जोरू के लिए लड़ते,
हमने भी अपनों की देह से लहू निचोड़े हैं,
ना जाने किसके, कहाँ के हम भगोड़े हैं।
नहीं मानता दिल ये सब ईश्वर का लिखा है,
किन बातों में किसे अबतक वो कहाँ दिखा है।
ना वो मन में, ना मंदिर में किसी के बसा है,
क्या कभी वो सर्वव्यापी कौड़ियों के भाव बिका है,
है कहीं अगर तो भी वो हमसे आज खफा है।
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हम सबकी ज़िन्दगी में एक समय आता है जब हम हर तरफ़ से निराश हो जाते हैं और ईश्वर के अस्तित्व पर संदेह करने लगते हैं। तब हमें यह अनुभव होता है कि ईश्वर की अवधारणा मनुष्य को मात्र आत्महत्या करने से बचाने के लिए ही गढ़ी गयी है। इसी यथार्थवादी मानसिकता में ये शब्द हृदय से निकल पड़े हैं।