हम ना होते तो क्या होता  Pradeep Kumar Rajak

हम ना होते तो क्या होता

Pradeep Kumar Rajak

आदमी की अहमियत क्या ये दुनिया ही बतलाती,
सोच ज़रा कि हम ना होते तो क्या होता,
रह कर भी इसका कोई अस्तित्व ना रह जाता,
हमारी दृष्टि ना पड़ती जब तक इसपर,
पूरा होकर भी ये पूरा शून्य ही कहलाता।
 

किसके लिए सूरज सुबह का संदेशा लाता,
जाते-जाते फ़िर तन्हाई का रंग लगा जाता,
चिड़ियों का कलरव फ़िर किसके मन भाता,
नदियों की कल-कल में भी संगीत सुन पाता,
सोच ज़रा कि हम ना होते तो क्या होता।
 

सितारों के आगोश में कौन सपनों में खो जाता,
बादलों से चाँद की आँखमिचौली देख कर सो जाता,
बारिश किसका मन रिझाती, मोर का नृत्य किसे बहकाता,
कड़कती बिजली का डर फ़िर किसपे छाता,
और ये सर्द मौसम किसके दिल की घंटियाँ बजाता।
 

कौन हमारे सिवा पतझड़ का भी लुत्फ उठाता,
बसंत में और किसका हृदय फ़िर उमंगों से भर जाता,
मिट्टी की खुशबू के लिए किसका जी मिचलाता,
भौंरे के स्पर्श से ही तो पुष्प और भी निखर जाता,
सोच ज़रा कि हम ना होते तो क्या होता।
 

सृष्टि का कण-कण किसे अपनी कथा सुनाता,
रहस्य जाल में अपने किसे उलझाता,
योग संयोग का अद्भुत खेल किसे समझ आता,
इस जीवन की पहेली फ़िर कौन सुलझाता,
सोच ज़रा हम ना होते तो क्या होता।

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