पचास प्लस वालों Gautam Kumar Sagar
पचास प्लस वालों
Gautam Kumar Sagarपचास प्लस वालों,
खुश हो जाओ कि
तुम्हें ईश्वर ने
खूब सारे वर्ष जीने के लिए चुना है।
चालीस-पचास की उम्र
पर पहुँच कर
मायूसी नहीं
उत्सव सा अनुभव होना चाहिए।
वजन कम-ज्यादा है तो है
दिल पर कोई
वजन ना रखें,
कमर को
भले कोई कमरा बोले,
मगर
शादियों में हमारे ही
डांस की चर्चा होती है।
शुगर को
वाक करके लात मारे,
हाई बीपी को
ठहाकों की आँधी में
उड़ा डाले।
बेटे, बेटी की आईआईटी
से ज्यादा
आपका चिंता मुक्त
रहना जरूरी है।
गोविंदा के गाने
ऊँची आवाज में
गाने के दिन
तो अब आए हैं।
स्पॉउस के साथ
नाईट में सुनसान सड़क पर,
ठंढी हवा के झोंकों में
निठल्ले घूमने के दिन तो
अब आए हैं।
अब आए हैं
कॉलेज, करियर, प्रमोशन,
टेंशन से दूर
खुलकर "एन्जॉय" करने
के 365 दिन , 52 सप्ताह और
12 महीने।
कभी-कभी कोई चीज़
बुरी भी नहीं होती,
ना सिगरेट,
न छोटा पैग,
मगर असली
नशा तो
जिंदगी का है,
जिसे भूला रहा,
कभी दोस्त की तरक्की से जलता रहा
कभी ऑफिस के वर्क लोड
से दिमाग खौलता रहा।
एसआईपी, एलआई, ईएमआई,
पेंशन प्लान,
भविष्य के भय में
खोते रहे पारसमणि
जैसा वर्तमान।
बचपन, जवानी, बुढ़ापा
यह सब देह से ज्यादा
दिमाग से जुड़ी चीज़ें हैं,
जिसका हृदय खिलखिलाते झरने
और महकते फूल की तरह होता है,
वह कभी बूढा नहीं होता है।
45, 46 ....हो या 55, ५६,
हर बढ़ती मोमबती के साथ
दिल में रौशनी
और हौसलों में चमक
बढ़ती रहनी चाहिए।
उमंगों की पतंग
हर मौसम
के आसमान पर
हमेशा
उड़ती रहनी चाहिए।