क्यों है?  sachin rai

क्यों है?

sachin rai

ढूँढने निकल गया हूँ आज मैं गौहर अपना,
लेकिन नदी में इतनी सरसराहट क्यों है?
यूँ तो छोड़ दिया है मैंने हर तलबग़ार को,
फिर आज जहाँ में मेरी वज़ाहत क्यों है?
 

बह रहें हैं सारे आँसू मेरे पानी की तरह,
फिर भी आज शक़्ल पर मुस्कराहट क्यों है?
सभी सुर्ख़ चेहरे खिलखिला रहें हैं आज,
फिर भी हर माथे पर थकावट क्यों है?
 

रौशनी छा रही है धीरे-धीरे आसमाँ में ,
फिर चाँद को जुगनू से बगावत क्यों है?
हर जगह से आती हैं आज अलग आवाज़ें,
फिर हर स्वर में एक रुकावट क्यों हैं?
 

ज़रुरत ही नहीं हर शख्स को किताब की,
फिर आज हर कागज़ पर लिखावट क्यों है?
अभी इस लौ को बुझने में थोड़ा वक़्त लगेगा,
फिर आज हवा को इतनी घबराहट क्यों है?
 

पिघल रही हैं जिंदगी अब मोम की तरह,
कुछ पल हँस कर जीने में शिकायत क्यों है?
हो गया दुनिया से मैं रुख़सत एक अरसे पहले,
फिर आज मेरी कब्र पर इतनी जमावट क्यों हैं?

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