खर-पतवार Mohanjeet Kukreja
खर-पतवार
Mohanjeet Kukrejaवक़्त हमेशा ख़ुद नहीं कटता,
कभी-कभी काटना पड़ता है,
जब प्यास लगे पर पानी ना हो,
ओस को भी चाटना पड़ता है।
सिर्फ दु:खों की बात करने से
बात कभी नहीं बना करती है,
लोग अपने हों या फिर पराए,
ख़ुशी को भी बाँटना पड़ता है।
दिलों के दरमियाँ नज़दीकियाँ
मुश्किल से बना करती हैं मगर,
दूरी कोशिश के बिना बढ़ती है,
उसको ज़रूर पाटना पड़ता है।
गुलशन में फूलों के साथ-साथ
काँटे भी मिलते ही हैं अक्सर,
ख़ुशियाँ अकेली, ना ग़म तन्हा,
दोनों को ही छाँटना पड़ता है।
चिंता तो है जंगली घास-फूस,
ना चाहते हुए भी उग आती है,
ख़ुश रहना हो अगर जीवन में,
खर-पतवार काटना पड़ता है।