खर-पतवार  Mohanjeet Kukreja

खर-पतवार

Mohanjeet Kukreja

वक़्त हमेशा ख़ुद नहीं कटता,
कभी-कभी काटना पड़ता है,
जब प्यास लगे पर पानी ना हो,
ओस को भी चाटना पड़ता है।
 

सिर्फ दु:खों की बात करने से
बात कभी नहीं बना करती है,
लोग अपने हों या फिर पराए,
ख़ुशी को भी बाँटना पड़ता है।
 

दिलों के दरमियाँ नज़दीकियाँ
मुश्किल से बना करती हैं मगर,
दूरी कोशिश के बिना बढ़ती है,
उसको ज़रूर पाटना पड़ता है।
 

गुलशन में फूलों के साथ-साथ
काँटे भी मिलते ही हैं अक्सर,
ख़ुशियाँ अकेली, ना ग़म तन्हा,
दोनों को ही छाँटना पड़ता है।
 

चिंता तो है जंगली घास-फूस,
ना चाहते हुए भी उग आती है,
ख़ुश रहना हो अगर जीवन में,
खर-पतवार काटना पड़ता है।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
2456
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com