खुदगर्ज़ Udit Gupta
खुदगर्ज़
Udit Guptaकुछ उलझे धागे सुलझाने मैं निकला था,
सुलझाते-सुलझाते खुद उनमे फँस गया हूँ,
बस करो अब थक गया हूँ,
खुदगर्ज़ मुझे होने दो।
अब बस खुद के लिए जीने दो,
ग़म के हों या ख़ुशी के,
सब जाम अकेले पीने दो,
खुदगर्ज़ मुझे होने दो।
मेरी ज़रुरत
मैं खुद हूँ,
तो बस उसे पूरी करने दो,
खुदगर्ज़ मुझे होने दो।
जो अधूरा है
अब उसे अधूरा ही रहने दो,
दर्द बहुत है मोहब्बतों में
बेदर्द मुझे होने दो,
खुदगर्ज़ मुझे होने दो।
मज़बूत वो है
जो अपनी कमज़ोरी जानता हो,
तो मज़बूत ज़रा हो जाने दो,
दूर जा रहा हूँ तुमसे
जाने दो,
ख़ुदगर्ज़ मुझे होने दो।
अब अपनी धुन में मग्न रहने दो,
खुदगर्ज़ मुझे होने दो।