इश्क़ की बाज़ी हार चुका हूँ VIVEK ROUSHAN
इश्क़ की बाज़ी हार चुका हूँ
VIVEK ROUSHANक्या बताऊँ किस तरह दर्द के इस रहगुज़र से गुज़रा हूँ,
जर्द चेहरे पर और आँखों में समंदर ले कर गुज़रा हूँ।
खुद को भूल कर भी तुमको याद करता रहा हूँ,
सारे जख्म सह कर भी मुस्कुराता रहा हूँ।
तू सामने नहीं थी फिर भी तुमको महसूस करता रहा हूँ,
तुमसे दूर रह कर भी खुद को तुम्हारे नज़दीक करता रहा हूँ।
तुम्हारे साथ बिताए उन सुनहरे पलों को अपनी पलकों में सजाए रखा हूँ,
अपने तन्हापन में इन्हीं पलों को याद करके अपना दिल बहलाता रहा हूँ।
दर्द, आँसू, खालीपन से वाकिफ पहले नहीं था,
अब रोज़ इन्हीं को गहनों की तरह पहनता हूँ।
यूँ तो अभी तक खुद से हारा नहीं हूँ,
पर ऐसा लगता है इश्क़ की बाज़ी हार चुका हूँ।