बदलाव की शुरुआत कर SUBHANA ZULFIQAR ALI
बदलाव की शुरुआत कर
SUBHANA ZULFIQAR ALIउमड़ रही, घुमड़ रही, शमा ये आज जल रही,
चीखती, पुकारती, घड़ी-घड़ी दहाड़ती।
उठा कदम, लगा आवाज़, तू युद्ध का ऐलान कर,
बहुत हुआ, बहुत हुआ, बदलाव की शुरुआत कर।
धधक रहा, उबल रहा, जो मन का यह सैलाब है,
जो दब गया या बुझ गया तो रोग लाइलाज है।
सुन ले अभी, सुन ले अभी, बहुत हुआ अब टाल मत,
बन कठोर निर्माण कर भविष्य की ना कर फ़िक्र।
न ढूँढ साथ, न कर विलाप, सहारा एक जाल है,
कर बंद आँख, कर ले विश्वास, तू खुद में ही समाज है।
जो आज तू यूँ बढ़ गया, अकेला ही निकल गया,
कल को तो बस बहार है, तेरी ही जय जयकार है।
उठा कमान, अब वार कर, खुद को ही तू साध कर,
तेरा ही युद्ध, दुश्मन भी तू, खुद को न अब तू कम समझ।
कष्ट को बर्दाश्त कर, खुद पे ही अब वार कर,
ऐसे ही बस जीतेगा तू, अब खुद से ही फिर हारकार।
अब कर गया तो कर गया, मौका न ये बर्बाद कर,
पत्थर पर भी वार कर, प्रहार पर प्रहार कर।
सिंह सी दहाड़ कर, शुरुआत से शुरुआत कर,
बहुत हुआ, बहुत हुआ, लोहार का अब वार कर।
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कभी कभी अचानक व्यक्ति को अपनी ज़िन्दगी में की हुई गलतियों का आभास होने लगता है। फिर वह उसको सोच-सोच कर दु:खी होता रहता है कि काश मैंने ऐसा न किया होता तो आज मैं शायद किसी और मुकाम पर होता। वह ये सोचना भूल ही जाता है की अभी भी उसके भविष्य के लिए कितनी सारी संभावनाएं बची हुई है।