मेरा गाँव RAHUL Chaudhary
मेरा गाँव
RAHUL Chaudharyजहाँ देखती है चाँदनी
चाँद की छाँव में,
कर दूधिया ये कायनात
चुपके से मेरे गाँव में।
धूप है खिली-खिली
खेतो में हिली-मिली,
रंग बालियों की फली
चमकती झूमती सुनहली।
बगिया खिली खूब हरियाली,
फूलों ने छोड़ी चटकी लाली,
आम के तरुवर पीली उजली,
झूली मंजरियाँ डाली-डाली।
हवा के झोंके सर-सर
फर-फर यूँ पानी के ऊपर,
घाट नदी के नीचे ऊपर
लहरों संग यू दौड़ रहे हैं।
कमल के पत्ते आसमां में
हाथ पसारे बिखर रहे हैं,
भंवरे रस पंखुड़ियों में
इस पर उस पर मचल रहे हैं।
खेत में फसलें लहर रहीं
पुरवाई बसंत बहार से,
यूँ ध्वज कोई फहर रहा।
हवा गुज़रती दाएँ-बाएँ
सरपट दौड़ इनके अंदर,
कदम ताल कोई दे रहा।
अाई हो थाली में रखकर
मनमोहक सी यूँ दामिनी,
प्रकृति का दामन यूँ हौले से,
स्वागत में मानो थामने।
लहर उठा यूँ ऊँचा जग में
त्योहार सा उमड़ाव है,
छाया नभ में अम्बर पर
उत्सव सा मेरे गाँव में।
गालियाँ कितनी सारी हैं,
पहुँचाती हर घर के द्वारे,
घूम फिर कर मानो ये
लौट के आती मेरे द्वारे।
यार दोस्ती रिश्ते नाते,
खेल खिलौने बचपन वाले,
बाग बगीचे ढोल मंजीरे,
चंचल बतिया पनघट वाले।
पानी भरते साथ नहाते,
कुँए में लटकी रस्सी वाले,
मटकी फोड़ी कंकड़िया से,
छेड़ा छाड़ी किस्से वाले।
चोरी वो बगिया वाली,
मस्तियाँ वो गाली वाली,
छुपन छुपाई टोली वाली,
गुड्डा गुडिया दुल्हन वाली।
कुछ नज़रें यूँ खास सी,
बिन लफ़्ज़ों के अल्फ़ाज़ से,
सांसों के एहसासों सी,
कोई धड़कन के यूँ पास से।
गीत भरे यूँ हवाओं में,
महकी सी फिज़ाओं में,
खींच रही कुछ बात
इत्र कोई मेरे गाँव में।
है याद बनके पर देश में,
लम्हें कुछ जज़्बात के,
महक लिए मिट्टी की जब
चेहरे मिलते अपने वेष के।
सोंधी देशी स्वाद के
एहसास का अरदास का,
पकवान की मिठास से
ममता का और प्यार का ।
शाम गुज़रती राह में,
रात कटती नहीं मगरूर ये,
दिल तो वहीं का वहीं अभी
रहता है मेरे गाँव में।