अपाहिज मुस्कान Mohanjeet Kukreja
अपाहिज मुस्कान
Mohanjeet Kukrejaउसने रोज़ की तरह
मुस्कुराते हुए,
घुटनों के बल चलकर
मेरे पास आते हुए
मेरी तरफ़ देखा,
एक बाल-सुलभ मुस्कान
अभिवादन सी करती हुई!
उसे यूँ मुस्कुराते देखकर,
उसे यूँ 'चलते' देखकर
किसी अबोध बालक का
स्मरण हो आता है मुझे,
जो घुटनों के बल
चलना सीख रहा हो!
मैंने प्रत्युत्तर में
मुस्कुरा कर जेब से
एक सिक्का निकाला
और बढ़े हुए हाथ पर
हौले से रख दिया
उस अपाहिज भिखारी के,
जो मुझे अक्सर सुबह
बस-स्टैंड पर मिल जाता है!