नव उत्थान रच रही हिन्दी Devendra Raj Suthar
नव उत्थान रच रही हिन्दी
Devendra Raj Sutharथिरक रही घर आंगन में,
दिल की आवाज़ बन हिन्दी,
महक रही रोम-रोम में,
युवती का यौवन बन हिन्दी।
चमक रही सुंदरी के भाल पर
बिन्दी बनकर आज हिन्दी,
खनक रही पायल बनकर
झांझर की झंकार हिन्दी।
दहक रही गहनों के भांति
स्त्री का सोलह श्रृंगार हिन्दी,
चहक रही चिड़िया बनकर
फिर नीड़ का निर्माण हिन्दी।
गायक बन नव गान कर
स्वर बिखेरती आज हिन्दी,
नायक बन नव नादकर
नव उत्थान रच रही हिन्दी।
प्रत्येक हिन्दवासी के उर में
राजा बन राज करती हिन्दी,
सर्व भाषाओं का सत्कार कर
आदर प्रकटाती आज हिन्दी।