समय RAHUL Chaudhary
समय
RAHUL Chaudharyजिसकी धारा अविरल है,
चपला से भी चंचल है,
प्रवाह से वंचित नहीं बेपरवाह भी,
कण-कण प्रभावित है इसकी राह में,
आना जाना या बनना उजड़ना,
स्थिर है शामिल है समय के पैमाने में।
धौंस है प्रबल घट-घट अमिट,
छाप हैं किरदार के पर वो अडिग,
सम्मान से अन्तर्द्वन्द का
हृदय में तूफान हो,
सार्थक ओज से स्वयं का,
काल पे प्रमाण हो।
किरदारें ना समा सकी इसके कोई इकाई में,
सदियों से अजेय,
चल रहा नभ थल जल इसकी परछाई में,
समय चक्र है ढलता,
तेरा चलता मेरा रुकता,
पल-पल लम्हा बढ़ता,
क्षण भर न ये है थमता।
बेतंज, हीन ये प्रपंच है,
मिट गए कितने, काल का ये मंच है,
लुप्त किया, बुनकर जाल,
ये काल का कपाल,
रोक सके ना इसकी चाल,
न धरा ने धारी ऐसा कोई ढाल।
अस्थिर, स्थापित हो हिम में स्तुति जाप का,
क्षण हर तीव्र नीर धीर शर वेग है उसका,
प्रबन्ध में हर कटिबद्ध हो,
तटबंध सा पाबंध हो,
निर्माण का प्रवाह हो सुसंयमित,
साकारता बुनता पग, करता मग फलित।