मेरी मुस्कुराहट बनी कसूर Krishn Upadhyay
मेरी मुस्कुराहट बनी कसूर
Krishn Upadhyayदिल में दुख भले ही रहता था पर फ़िर भी हँसता था,
ताकि मेरे अपनों के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाए,
उनके हँसते मुस्कुराते चेहरे को देख कर
मेरे दिल को भी सुकून आ जाए।
लेकिन सच से तो बिल्कुल अनजान था मैं,
या यूँ कहिए कि समझदार होकर भी नादान था मैं।
उसकी खुशी की खातिर जो सहना था
हँस कर सह लिया,
जिसकी फिक्र खुद से ज़्यादा करते थे,
आज उसी ने मुझे मसख़रा कह दिया।
सोचा नहीं था कि मेरे सपनों का मह
मेरी पहुँच से दूर बन जाएगा,
मेरा मुस्कुराना ही मेरे
अपने के लिए कसूर बन जाएगा।
लेकिन याद रखना कि आज
और अभी से ये फ़ितरत बदलेगी,
वो शख़्सियत जिसने हमें कमज़ोर समझा,
वो एक दिन खुद हमसे मिलने को तरसेगी।
आज फ़िर हम पर रब का
एक और सितम हो गया,
मेरे अपनो की लिस्ट में से एक नाम
हमेशा के लिए कम हो गया।
खेल खेलने से पहले ही
उसने हमे कमज़ोर जान लिया,
एक नए खिलाड़ी के सामने
हमें हारा हुआ मान लिया।
कौशल कम नहीं था पर
हमारा थोड़ा अंदाज़ बदला हुआ था,
अपनों की खुशी की खातिर
जलता कोयला हमने हाथों में जकड़ा हुआ था।
वरना तो हर युद्ध के लिए
तैयार हम बम भी रखते हैं,
ऐसे खिलाड़ियों की औकात भरे मैदान में दिखा दें,
इतना दम हम भी रखते हैं।
आज से तुझ जैसे गैरों के पीछे
हमने भटकना छोड़ दिया,
हँसी मजाक में भी जा आज से
तुझसे जा लड़ना छोड़ दिया।
कल की इस दुनिया के आगे
तूने मुझे कमज़ोर मान लिया,
दुनिया मानती है कि हम किसी से कम नहीं
ये बात तुझे एक दिन जता देंगे।
गलती की जो तूने मुझे कमज़ोर समझा
समय आने दे हम क्या हैं बहुत जल्द बता देंगे।