पतझड़ जीवन में  RAHUL Chaudhary

पतझड़ जीवन में

RAHUL Chaudhary

वट, वन और बाग बगीचे,
सूख पत्तियाँ तरुवर के नीचे,
बिखर रही जीर्ण शीर्ण खिंचे,
मुरझा कर धरा पर नीचे।
 

पथिक निराशा भरकर मन में,
अज्ञात विकट डर धरकर तन में,
बिखर रहा यूँ टूट रूठ कर,
घायल पंख दर्द से कराह कर।
 

नई कोंपलें विकसित डाली में,
कायाकल्पित होने की लाली में,
नवनीत शाख पर पर्ण वृंद घनेरे,
प्रकृति ने कलम से दृश्य उकेरे।
 

पतझड़ ने खोला द्वार अब,
इब्तिदा नूतन दीदार का,
है शंखनाद आसमां का अब,
श्रृंगार ऋतु बसंत बहार का।
 

हे! विहग मत बैठ टूटकर,
काया कल्पित होगा तेरा,
कदम बढ़ा तू दम भरकर,
दिन बहुरेगा फिर से तेरा।
 

प्रकृति ने नव ऊर्जा नव भाव से,
ओज से सींच भरा आशा और विश्वास से,
पुष्प खिले बिखरे मनोरम नज़ारे,
श्रृंगार से कल्पित होकर रहने को प्रेरित करे।
 

रंग बासंती त्याग, विजय का,
सारांश को उद्गार करे,
विकार के त्याग की ऊष्मा,
प्रबल व्यक्तित्व में उद्धृत करे।
 

सूर्य उत्तरायण होकर,
प्रखर गंभीरता के रस का,
रोज ये यात्रा पर निकलकर,
प्रकाश है बाँटता स्फूर्ति और ओज का।
 

उर्वरा हरियाली में, पक कर स्वर्णिम गेहूँ,
बनकर बाली-बाली झूल गए खेतो में,
सरसों लहराई मदमस्त हुए,
कृषक गीत लिए पीत पुष्प में।
 

कूक कोयलिया उद्वेलित कर
भवरों का प्राण,
मदनोत्सव के आगाज़ का
बिगुल बजा गाया गान।
 

मदमस्त फागुनी गीत में
शीतल मन्द हवा ने,
सुहाने मौसम के रंग से
होलिकात्सव का न्योता दिया।
 

मोहनी खुशबू सुहाने बसंत में,
मंगल गीत मंगल कार्य के,
गूंज उठी चहुँओर फिजा में,
शहनाइयाँ और ढोल विवाह के।
 

पतझड़ के इस पार दीदार बसंत का,
हे! नर कर संघर्ष इस मंजिल का,
तेरी होगी प्रबलता जमीं पर प्रस्तर सा,
सुदर्शन, आकर्षक, मनोरम बसंत सा।
 

भर हौसला प्रयास कर मन से,
आएगा बसंत पतझड़ के परिवर्तन से,
स्फूर्ति और खुशियों से सजेगा वातावरण,
छँटेगा अंधेरा परों में प्रकाश भरकर।

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