परिश्रम अंकित कुंवर
परिश्रम
अंकित कुंवरकर्म संपन्न जगत स्वर्ग पाहि,
कर्म हीन नर भाग्यपथ माही।
देवलोक पावत सफल कारि,
परलोक जावत अहंकार हारि।
पुरूषार्थ उन्नति गुण महान,
अपुरूषार्थ अवनति अवगुण समान।
कर्म योगी सत्य कहत जग सारा,
केहू न कहे कर्महीन है न्यारा।
परिश्रम कारि सुख फल पावे,
जगत-जगत महान कहावे।